बुधरी ताती, ये नाम शायद आपने पहले ना सुना हो. लेकिन दक्षिण बस्तर में बुधरी ताती महिला सशक्तिकरण का दूसरा नाम है। दक्षिण बस्तर यानि दंतेवाड़ा से अबूझमाड़ तक फैला धुर नक्सल प्रभावित इलाका। एक ऐसा इलाका जहां चप्पे-चप्पे पर मौत अपना शिकार ढूंढती है। बारूद, गोली, एनकाउंटर, पुलिस-नक्सली गंघर्ष वाले इस क्षेत्र में बुधरी ताती 80 के दशक से शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और आत्मनिर्भरता की अलख जगा रही हैं। 1985 में 12 आदिवासी बच्चों के छात्रावास को शुरुकर अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत करने वाली बुधरी ताती ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1986 से 1987 तक पूरे वर्ष भर अबूझमाड़ में पैदलयात्रा कर 400 गांवों से संपर्क साधा और वहां रहने वाली महिलाओं को सशक्त बनाने का काम बुधरी ताती ने किया है। महज 15 वर्ष की आयु में शुरु हुआ बुधरी ताती का सफर यहीं नहीं रुका, उन्होंने 1990 में 11 बालिकाओं के साथ कन्या छात्रावास भी शुरु किया। बचपन में ही स्कूल छोड़ देने वाली महिलाओं को खोज-खोजकर पढ़ाने वाली बुधरी ताती खुद केवल दसवीं पास हैं। उनके प्रयास से 550 आदिवासी महिलाओं ने सिलाई,बुनाई और अन्य हुनर सीखकर कुटीर उद्योग चलाने के लिए ट्रेनिंग ले चुकी हैं। बुधरी ताती ने अबूझमाड़ के कई गावों में लोगों को प्रतिदिन नहाना सिखाया। देवी प्रकोप के डर से दवाई ना खाने वाले आदिवासियों को बुधरी ताती ताती ने दवाई खाना सिखाया। उनके मन का डर दूर किया कि दवाई खाने से देवी-देवता नाराज नहीं होते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सुदूर बस्तर के हीरानार में बुधरी ताती वृद्धाश्रम भी चला रही हैं। उनकें वृद्धाश्रम में कई बूढ़ी महिलाओं को पनाह मिली हुई है, जिन्हें किसी कारणवश अपना घर नसीब नहीं है। तिस पर हकीकत ये भी कि बुधरी ताती को कभी कोई सरकारी सहायता नही मिली। केवल उनके वृद्धाश्रम को न्यूनतम सरकीरी मदद मिलती है। बच्चों का छात्रावास, आदिवासी महिलाओं का सशक्तिकरण, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य का अभियान बुधरी ताती अपने दम-खम से ही चला रही हैं। उनका साथ उनकी परछाई की तरह शांति बेक देती हैं, जो रिश्ते में उनकी भतीजी हैं। बुधरी और उनकी टीम की सभी महिलाओं ने अविवाहित रहनेे का संकल्प लिया है और अपना पूरा जीवन बस्तर के लोगों के नाम कर दिया है। देखीिए उनकी साहस भरी कहानी। (creation by Ashok kaushal)
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